बिहार के 10 खूबसूरत पर्यटन स्थल- Top 10 Tourist Places in Bihar

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बिहार भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपने समृद्ध विरासत तथा ऐतिहासिक महत्व के लिए काफी प्रसिद्ध है। देश के पूर्वी हिस्से में स्थित यह राज्य झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश तथा नेपाल से अपनी सीमाएं साझा करता है। बिहार जनसंख्या की दृष्टि से भारत का तीसरा बड़ा राज्य माना जाता है। प्राचीन काल में मगध नाम से प्रसिद्ध बिहार अपने गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए एक अलग ही पहचान के लिए विश्व विख्यात है। यहां पहले मौर्य साम्राज्य, गुप्त तथा मुगल शासकों का शासन था। इस धरती ने देश को बुद्ध, महावीर और सम्राट अशोक जैसे महान व्यक्तियों से परिचय कराया है। जो इस पौराणिक और ऐतिहासिक राज्य को नई उचांइयों पर ले गए। यह राज्य पौराणिक समय में बुद्ध एवं हिंदू धर्म के लोगों का प्रमुख स्थान हुआ करता था। देखा जाए तो आज भी क्षेत्र में ऐसे कई जगहें शामिल हैं जहां पर अनेक पर्यटक आकर इसकी संस्कृति से रूबरू होते हैं। देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के बीच यहां मनाए जाने वाले कई पर्व, मेले आदि प्रसिद्ध हैं। प्रमुख रूप से यह मेले और पर्व तथा त्यौहार ही पर्यटकों के मुख्य आकर्षण के केंद्र बिंदु रहते हैं। इनके अलावा इस राज्य में ऐसे कई सारे पर्यटन स्थल मौजूद हैं जो इतिहास के साथ-साथ आज के वर्तमान समय से सामंजस्य को महत्व देते हैं।इसमें मंदिर, गुरुद्वारे, जैन मंदिर, बुद्ध धार्मिक स्थल आदि ऐसे कई स्थान हैं। यहां पर आज भी इतिहास के कई प्रमाण मौजूद हैं। आइए बिहार के कुछ ऐसे ही प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों जानकारी लेते हैं।

बिहार भारत का एक ऐसा राज्य है जो अपने समृद्ध विरासत तथा ऐतिहासिक महत्व के लिए काफी प्रसिद्ध है। देश के पूर्वी हिस्से में स्थित यह राज्य झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश तथा नेपाल से अपनी सीमाएं साझा करता है। बिहार जनसंख्या की दृष्टि से भारत का तीसरा बड़ा राज्य माना जाता है। प्राचीन काल में मगध नाम से प्रसिद्ध बिहार अपने गौरवशाली इतिहास को समेटे हुए एक अलग ही पहचान के लिए विश्व विख्यात है। यहां पहले मौर्य साम्राज्य, गुप्त तथा मुगल शासकों का शासन था। इस धरती ने देश को बुद्ध, महावीर और सम्राट अशोक जैसे महान व्यक्तियों से परिचय कराया है। जो इस पौराणिक और ऐतिहासिक राज्य को नई उचांइयों पर ले गए। यह राज्य पौराणिक समय में बुद्ध एवं हिंदू धर्म के लोगों का प्रमुख स्थान हुआ करता था।

देखा जाए तो आज भी क्षेत्र में ऐसे कई जगहें शामिल हैं जहां पर अनेक पर्यटक आकर इसकी संस्कृति से रूबरू होते हैं। देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के बीच यहां मनाए जाने वाले कई पर्व, मेले आदि प्रसिद्ध हैं। प्रमुख रूप से यह मेले और पर्व तथा त्यौहार ही पर्यटकों के मुख्य आकर्षण के केंद्र बिंदु रहते हैं। इनके अलावा इस राज्य में ऐसे कई सारे पर्यटन स्थल मौजूद हैं जो इतिहास के साथ-साथ आज के वर्तमान समय से सामंजस्य को महत्व देते हैं।इसमें मंदिर, गुरुद्वारे, जैन मंदिर, बुद्ध धार्मिक स्थल आदि ऐसे कई स्थान हैं। यहां पर आज भी इतिहास के कई प्रमाण मौजूद हैं। आइए बिहार के कुछ ऐसे ही प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों जानकारी लेते हैं।

सीतामढ़ी (Sitamani)

सीतामढ़ी बिहार के जाने-माने धार्मिक पर्यटक स्थलों में से एक है।धार्मिक दृष्टि से इस स्थान का बहुत अधिक महत्व है क्योंकि इसे जानकी यानी कि सीता मां की जन्मस्थली माना जाता है। इस क्षेत्र में माता सीता का एक बेहद ही खूबसूरत और भव्य मंदिर स्थित है जो सीतामढ़ी के पुरौना क्षेत्र में बनाया गया है। कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहां पर राजा जनक को पुत्री के रूप में माता सीता की प्राप्ति हुई थी। मंदिर में मुख्य देवता के रूप में राम, सीता तथा हनुमान जी विराजित हैं। इस मंदिर के दक्षिण की ओर निकट ही एक बड़ा कुंड है। जहां बीचो-बीच सीता जी की मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि इस कुंड में राजा जनक सीता को स्नान करवाने के लिए लेकर आते थे।

मंदिर परिसर के भीतर गायत्री मंदिर तथा विवाह मंडप मंदिर आदि भी सुसज्जित हैं। इस मंदिर का निर्माण 100 वर्ष पुराना माना जाता है। इस के प्रवेश द्वार के भीतर एक बड़ा विशाल आंगन बड़ी संख्या में भक्तों को आश्रय प्रदान करता है। इसके साथ बिहार क्षेत्र में पौराणिक समय से ही रामायण का अत्यधिक प्रभाव रहा है जिससे यह मंदिर एक महत्वपूर्ण मंदिर माना जाता है। इस कारण हर वर्ष नवरात्रि और रामनवमी तथा जानकी नवमी के दिन यहां भक्तों का जमावड़ा लगता है। हजारों भक्तों वर्ष भर मंदिर के दर्शन के लिए तत्पर रहते हैं। यदि आप भी ऐसे पौराणिक महत्व को मानते हैं तो आपके लिए यह स्थान घूमने लायक एक अच्छे स्थानों में से हो सकता है।

नालंदा (Nalanda)

बिहार राज्य के विभिन्न जिलों में नालंदा जिला महत्वपूर्ण पर्यटक स्थलों में से एक है। इस जिले का मुख्यालय बिहार शरीफ है। नालंदा शहर का की स्थापना पांचवी शताब्दी में मानी जाती है। इस शहर का नाम संस्कृत भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ है ज्ञान देने वाला। इस जिले में प्राचीन रूप से निर्मित नालंदा विश्वविद्यालय पर्यटक स्थल,  राजगीर और पावापुरी अपने खंडहरों के लिए विश्व प्रसिद्ध हो गए हैं।  नालंदा महाविहार यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया है। नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष अभी भी यहां के इतिहास को समेटे हुए हैं। इसी वजह से नालंदा एक पुरातत्व स्थल बन गया है। नालंदा के पुरातात्विक अवशेषों में स्तूप मंदिर,  पत्थर की विभिन्न धातु, महत्वपूर्ण कला कार्य तथा प्लास्टर आदि सम्मिलित हैं।

देखा जाए तो प्राचीन काल से ही नालंदा शिक्षा का एक मुख्य केंद्र रहा है और यहां पर तिब्बत, चीन, टर्की, ग्रीस और ईरान सहित विभिन्न देशों के विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे। यह सबसे पहले बनाया जाने वाला आवासीय विद्यालय है। जहां पर एक वक्त में लगभग 2000 शिक्षक और 10000 विद्यार्थी निवास करते थे। पर्यटक स्थलों की दृष्टि से भी नालंदा एक महत्वपूर्ण स्थल है। इस के वास्तुशिल्प को बड़े ही अद्भुत ढंग से तैयार किया गया है। यहां पर मंदिर, विभिन्न कक्षा हॉल, झीलें आदि बनाए गए हैं तथा नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर लाल ईंटों से निर्मित है, जो अपने आप में अद्वितीय है। यहां पर एक 9 मंजिला इमारत भी थी जिसे पुस्तकालय का नाम दिया गया था। यहां पर कई शास्त्रों और ग्रंथों को परिश्रम और लगन के साथ लिखा तरह संरक्षित रखा गया है। दरअसल पश्चिम से आए आक्रमक आक्रमणकारियों ने इस स्थान पर हमला करके इस संस्थान को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया था। यह कहा जाता है यहां का पुस्तकालय लगातार तीन महीनों तक आग में जलता रहा। अब यह विश्वविद्यालय खंडहर में तब्दील हो गया है, परंतु आज भी यह अपने गौरवशाली इतिहास को बयां करता हुआ लाखों पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

वैशाली (Vaishali)

बिहार का एक खूबसूरत गांव वैशाली पर्यटन स्थलों में प्रसिद्ध है। यह स्थान एक दृढ़ इतिहास तथा पौराणिक संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां सुंदर-सुंदर खेत, बड़े-बड़े बाघ, आम और केले के वृक्ष अद्भुत छटा बिखेरते हैं। इतिहास की दृष्टि से देखा जाए तो इस क्षेत्र का वर्णन रामायण तथा महाभारत में भी दिया गया है। दरअसल इस जगह का नाम विशाल नाम के राजा के नाम पर रखा गया है। यहां पर भगवान महावीर स्वामी का जन्म भी हुआ था। महावीर स्वामी के जन्म से पहले यह वैशाली नगर लिक्विड राज्य की राजधानी के रूप में प्रसिद्ध था। विभिन्न इतिहासकारों द्वारा यह भी माना गया है कि वैशाली छठवीं शताब्दी में पहले गणराज्य के रूप में विकसित राज्य था और प्राचीन काल में यहां पर एक बड़े निकाय की स्थापना भी की गई थी। यहां पर बड़े-बड़े खंबे निर्मित हैं जिन पर भगवान बुद्ध के उद्घोष तथा उपदेश रचित हैं। कहा जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपने ज्ञान के 100 सालों बाद इस स्थान पर आकर दूसरे बौद्ध परिषद की मेजवानी भी की थी।

पर्यटन के मामले में अब वैशाली एक बहुत ही आकर्षक नगर बन चुका है। जो कई पौराणिक और पुरातात्विक चीजों से लेकर विभिन्न धर्म और संस्कृति को संजोए हुए है। यहां पर बुद्ध स्तूप, राज विशाल का घर, बुद्धि माई, अशोक खंबा, राम चाऊरा वैशाली संग्रहालय, विश्व शांति शिवालय, कुंडलपुर आदि देखने लायक जगहें पर्यटकों को अपनी ओर दृढ़ता से आकर्षित करती हैं। इसके अलावा वैशाली महोत्सव यहां का मुख्य त्यौहार है जो भगवान महावीर के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर मनाया जाता है। जहां के शिल्प और कला के सामान पर्यटकों को काफी लुभाते हैं। इन्हें यहां पर सरलता से देखा और खरीदा जा सकता है। यदि आप भी ऐसी ऐतिहासिक चीजों के बारे में रुचि रखते हैं तो यहां आकर भ्रमण का आनंद ले सकते हैं।

बोधगया (Bodh Gaya)

बोधगया बिहार के प्रसिद्ध जिलों में से एक है जोकि बौद्ध धर्म के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। दरअसल इस मशहूर स्थान पर करीब 2500 वर्ष पहले भगवान बुद्ध ने कठोर तप किया था। कहा जाता है कि इसी स्थान पर एक पीपल के वृक्ष के नीचे 49 दिनों तक तप करने के बाद भगवान बुद्ध को वैशाख महीने की पूर्णमासी को दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अब इस पीपल के वृक्ष को बोधि वृक्ष के नाम से जाने जाना जाता है तथा तभी से इस स्थान को भी बोध गया कहा जाने लगा। यहां पर दुनिया में प्रसिद्ध महाबोधि मंदिर स्थित है। इसका निर्माण राजा अशोक ने करवाया था। इस प्रसिद्ध मंदिर में भगवान गौतम बुद्ध की एक बड़ी मूर्ति का निर्माण भी किया गया है। मंदिर के निकट ही तिब्बतियन मठ बोधगया स्थित है, जो सबसे पुराना और बड़े मठों में माना जाता है। बोधगया का यह परिसर बिहार के पटना से 110 किलोमीटर दूर है। यहां पितृपक्ष के दौरान लोग श्राद्ध करने के लिए आते हैं। यहां पर एक आर्कियोलॉजी म्यूजियम भी अवस्थित है जो पर्यटकों के लिए घूमने लायक एक अच्छा स्थान है।

दरभंगा (Darbhanga)

दरभंगा बिहार के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक है। इसकी दूरी नेपाल से 50 किलोमीटर की है। इसे मुख्य रूप से बिहार की सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। दरभंगा शहर का नाम दो शब्दों के मिलने से बना है- द्वार तथा बंगा। जिसमें द्वार का अर्थ है 'दरवाजा' और बंगा का मतलब है 'बंगाल' यानी कि बंगाल का दरवाजा या प्रवेश द्वार। दरअसल प्राचीन समय में दरभंगा मिथिला का एक महत्वपूर्ण नगर हुआ करता था जो गंगा नदी और हिमालय की तलहटी में स्थित था। यहां की मिथिला पेंटिंग पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इस क्षेत्र में मिथिला के पारंपरिक लोक नृत्य शैलियां उस समय काफी लोकप्रिय थी, जो आज भी नटवा नौटंकी, नटवा नाच तथा समा छकेवा के रूप में जीवंत हैं। इस क्षेत्र में विभिन्न मेले विभिन्न मौकों पर आयोजित होते हैं जिनमें दशहरा मेला, जन्माष्टमी मेला, कार्तिक पूर्णिमा मेला का विशेष महत्व है। इस क्षेत्र के निकट कुशेश्वर आस्थान पक्षी अभ्यारण, दरभंगा किला, श्यामा काली मंदिर, होली रोसरी चर्च, महिनाम महादेव स्थान, चंद्रधारी संग्रहालय, मखदूम बाबा की मजार आदि पर्यटकों के आकर्षण के मुख्य केंद्र हैं। इसके अलावा दरभंगा क्षेत्र एक मजबूत तथा अद्भुत पर्यटन स्थल के लिए महत्वपूर्ण है। यहां जाकर आपको सदियों से समृद्ध लोक कला और परंपरा तथा धार्मिक स्थलों के बारे में अवश्य ही काफी कुछ नया जानने को मिलेगा।


शेरशाह सूरी का मकबरा (Shershah Suri Tomb)

शेरशाह सूरी का मकबरा बिहार राज्य के सासाराम में स्थित है। यह मकबरा प्राचीन वास्तुकला के एक बेहतरीन उदाहरण के रूप में मशहूर है। इसे मीर मोहम्मद अलीवाल खान के द्वारा चित्रित किया गया था तथा इसे 1540 से 1545 के बीच में निर्मित किया गया। यह मकबरा काफी विशाल है, जिसमें बड़े-बड़े खुले आंगन, तरह-तरह के स्तंभ और ऊंचे ऊंचे गुंबद सम्मिलित हैं। यह खूबसूरत संरचना तीन मंजिला ऊंचा है। यह मकबरा एक आयताकार कृत्रिम झील के बीच में स्थित है, जो अष्टकोणीय योजनाबद्ध तरह से निर्मित किया गया है। इस मकबरे की सबसे महत्वपूर्ण और दिलचस्प बात है कि इसे ताजमहल से भी 13 फीट ऊंचा बनाया गया है और ज्यादातर लाल बलुआ पत्थर से सजे इस मकबरे के अंदर दीवारों पर कुरान से प्राप्त शिलालेखों को रचा गया है। इस मकबरे के निकट में ही हसन खान सूर का मकबरा, साईं बाबा का मंदिर, मां तारा चंडी का मंदिर आदि अवस्थित हैं। इस तरह से देखा जाए तो यह मकबरा भारतीय पर्यटन के विशेष ऐतिहासिक स्थलों में अपनी एक महत्वपूर्ण पहचान रखता है। इस कारण ही पर्यटक इसकी इस्लामिक वास्तुकला के तत्वों को जानने में खासी रुचि दिखाते हैं।


पावापुरी (Pawapuri)

बिहार के पटना से लगभग 101 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पावापुरी। यह क्षेत्र केवल जैन यात्रियों के लिए प्रमुख नहीं है बल्कि विभिन्न तरह से मनोरंजन के लिए यहां आने वाले पर्यटकों के लिए भी एक खूबसूरत स्थान है। जैन लोगों के लिए पावापुरी का महत्व यहां के जल मंदिर के कारण है। यहां पर स्थित जल मंदिर में भगवान महावीर को 500 ईसा पूर्व निर्वाण की प्राप्ति हुई थी और उन्हें यही दफनाया गया था। इस कारण यह मंदिर सभी जैन भक्तों के लिए पूजा का स्थल है।

यात्रा के लिहाज से देखा जाए तो नालंदा, राजगीर तथा बिहार शरीफ जैसे शहर इस क्षेत्र के काफी निकट हैं। यहां पर पर्यटकों के लिए घूमने के लिए भी काफी अलग-अलग स्थान हैं जिनमें ह्वेनसांग मेमोरियल हॉल, ग्रिथाकुटा पीक, घोरा कटोरा झील, सारिपुत्र का स्तूप आदि प्रमुख हैं। प्राचीन काल में पावापुरी शहर एक प्रसिद्ध क्षेत्र था इस शहर का नाम पावापुरी यहां के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को समर्पित है। इसका अर्थ होता है कोई पाप नहीं। यहां पर मंदिर के चारों ओर की झील लाल रंग के कमल के फूलों से भरी हुई होती है तथा मंदिर के भीतर महावीर भगवान महावीर के चरण पादुकाओं को देखा जा सकता है। इसलिए यह जैन धर्म को मानने वाले लोगों तथा तीर्थ यात्रियों के लिए एक पवित्र धर्मस्थल है। एक बार यहां अवश्य आएं।

राजगीर (Rajgir)

राजगीर का पुराना नाम राजगृह था जिसका अर्थ होता है राजा का घर। यह क्षेत्र भारत के बिहार राज्य में स्थित है जो कि मगध क्षेत्र की प्राचीन राजधानी के रूप में विख्यात था। इस क्षेत्र के बारे में पांडवों के समय उपस्थित जरासंध की कहानी में उल्लेख मिलता है। इसके साथ-साथ गौतम बुद्ध और भगवान महावीर के समय भी यह नगर काफी प्रसिद्ध था। यह नगर ऊपर से अनेक पहाड़ियों से घिरा हुआ है जो कि पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पर्यटक स्मारकों से भी यह क्षेत्र भरा पड़ा है, जिनमें अजातशत्रु किला, जीव करम उद्यान तथा स्वर्ण भंडार आदि सम्मिलित हैं।

इसके साथ-साथ ब्रह्मकुंड औषधीय गुणों वाले गर्म पानी के झरने के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। इसके अलावा राजगीर की सप्तपर्णी गुफा भी बौद्ध परिषद के स्थल के रूप में विख्यात है। यहां के प्रमुख उत्सवों में राजगीर नृत्य महोत्सव प्रमुख हैं। इसके अलावा मकर संक्रांति का उत्सव भी यहां के लोग बड़े धूमधाम से मनाते हैं तथा मलमास मेका हर 3 वर्ष में आयोजित किया जाने वाला त्यौहार है। भक्ति गीत और वाद्य यंत्रों के साथ शास्त्रीय नृत्य के माध्यम से यहां के लोग इन त्योहारों को मनाते तथा विभिन्न रूप से पर्यटकों को इनमें शामिल करते हैं। इस कारण पर्यटक इस जगह की ओर खींचे चले आते हैं।

वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान (Valmiki National Park)

वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान बिहार राज्य के पश्चिमी चंपारण जिले में वाल्मीकि नगर में स्थित है। यह उद्यान नेपाल की सीमा के नजदीकी बेतिया से 100 किलोमीटर दूर अवस्थित है। वैसे तो यह छोटा सा कस्बा ही है और यहां की आबादी भी कम है, परंतु यह एक ऐसा उद्यान है जहां पर अनेक तरह के जीव जंतु पाए जाते हैं। यह क्षेत्र अधिकांशत वनों से ढका हुआ है। दरअसल यह उद्यान पश्चिम में हिमालय पर्वत से आने वाली गंडक नदी तथा उत्तर में नेपाल के रॉयल चितवन नेशनल पार्क से चारों ओर से घिरा हुआ है। यह उद्यान लगभग 900 गज के क्षेत्र में फैला हुआ है तथा 1990 में निर्मित किया गया था। 

पूरी तरह से हरियाली होने के कारण यहां पर बड़ी संख्या में विभिन्न तरह के जीव जंतु पाए जाते हैं। इन जीव जंतुओं में जंगली बिल्लियां, जंगली कुत्ते, राइनोसेरॉस, बाघ, भेड़िए, चीते, अजगर, हिरण, स्लॉथ बियर, सांभर, नीलगाय, हायना तथा पीफोल पाए जाते हैं। कभी-कभी चितवन से बाल्मीकि नगर तक भारतीय भैंसे भी पहुंच जाते हैं। इनके अलावा इस उद्यान में उड़ान लोमड़ीयां भी देखने को मिलती हैं। पेड़ पौधों की बात की जाए तो यहां पर भांग के साथ मिश्रित वन अधिक दिखाई देते हैं। इस क्षेत्र में विविध प्रकार के पक्षी होने के कारण इसे भारतीय पक्षी संरक्षण नेटवर्क ने एक महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में भी जगह दी है। अतः आप यदि प्रकृति प्रेमी हैं और पशु पक्षियों में विशेष रूचि रखते हैं तो यहां आकर आप निराश नहीं होंगे।


वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान (Valmiki National Park)

वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान बिहार राज्य के पश्चिमी चंपारण जिले में वाल्मीकि नगर में स्थित है। यह उद्यान नेपाल की सीमा के नजदीकी बेतिया से 100 किलोमीटर दूर अवस्थित है। वैसे तो यह छोटा सा कस्बा ही है और यहां की आबादी भी कम है, परंतु यह एक ऐसा उद्यान है जहां पर अनेक तरह के जीव जंतु पाए जाते हैं। यह क्षेत्र अधिकांशत वनों से ढका हुआ है। दरअसल यह उद्यान पश्चिम में हिमालय पर्वत से आने वाली गंडक नदी तथा उत्तर में नेपाल के रॉयल चितवन नेशनल पार्क से चारों ओर से घिरा हुआ है। यह उद्यान लगभग 900 गज के क्षेत्र में फैला हुआ है तथा 1990 में निर्मित किया गया था। 

पूरी तरह से हरियाली होने के कारण यहां पर बड़ी संख्या में विभिन्न तरह के जीव जंतु पाए जाते हैं। इन जीव जंतुओं में जंगली बिल्लियां, जंगली कुत्ते, राइनोसेरॉस, बाघ, भेड़िए, चीते, अजगर, हिरण, स्लॉथ बियर, सांभर, नीलगाय, हायना तथा पीफोल पाए जाते हैं। कभी-कभी चितवन से बाल्मीकि नगर तक भारतीय भैंसे भी पहुंच जाते हैं। इनके अलावा इस उद्यान में उड़ान लोमड़ीयां भी देखने को मिलती हैं। पेड़ पौधों की बात की जाए तो यहां पर भांग के साथ मिश्रित वन अधिक दिखाई देते हैं। इस क्षेत्र में विविध प्रकार के पक्षी होने के कारण इसे भारतीय पक्षी संरक्षण नेटवर्क ने एक महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में भी जगह दी है। अतः आप यदि प्रकृति प्रेमी हैं और पशु पक्षियों में विशेष रूचि रखते हैं तो यहां आकर आप निराश नहीं होंगे।

वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान (Valmiki National Park)

वाल्मीकि राष्ट्रीय उद्यान बिहार राज्य के पश्चिमी चंपारण जिले में वाल्मीकि नगर में स्थित है। यह उद्यान नेपाल की सीमा के नजदीकी बेतिया से 100 किलोमीटर दूर अवस्थित है। वैसे तो यह छोटा सा कस्बा ही है और यहां की आबादी भी कम है, परंतु यह एक ऐसा उद्यान है जहां पर अनेक तरह के जीव जंतु पाए जाते हैं। यह क्षेत्र अधिकांशत वनों से ढका हुआ है। दरअसल यह उद्यान पश्चिम में हिमालय पर्वत से आने वाली गंडक नदी तथा उत्तर में नेपाल के रॉयल चितवन नेशनल पार्क से चारों ओर से घिरा हुआ है। यह उद्यान लगभग 900 गज के क्षेत्र में फैला हुआ है तथा 1990 में निर्मित किया गया था। 

पूरी तरह से हरियाली होने के कारण यहां पर बड़ी संख्या में विभिन्न तरह के जीव जंतु पाए जाते हैं। इन जीव जंतुओं में जंगली बिल्लियां, जंगली कुत्ते, राइनोसेरॉस, बाघ, भेड़िए, चीते, अजगर, हिरण, स्लॉथ बियर, सांभर, नीलगाय, हायना तथा पीफोल पाए जाते हैं। कभी-कभी चितवन से बाल्मीकि नगर तक भारतीय भैंसे भी पहुंच जाते हैं। इनके अलावा इस उद्यान में उड़ान लोमड़ीयां भी देखने को मिलती हैं। पेड़ पौधों की बात की जाए तो यहां पर भांग के साथ मिश्रित वन अधिक दिखाई देते हैं। इस क्षेत्र में विविध प्रकार के पक्षी होने के कारण इसे भारतीय पक्षी संरक्षण नेटवर्क ने एक महत्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में भी जगह दी है। अतः आप यदि प्रकृति प्रेमी हैं और पशु पक्षियों में विशेष रूचि रखते हैं तो यहां आकर आप निराश नहीं होंगे।