हिरनी के गर्भ से जन्मे शृंगी ने कराया था अनुष्ठान, पढ़िए कैसे बने वो दशरथ के दामाद
बिहार में यज्ञ से हुआ था राम का जन्म
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से दक्षिण दिशा में करीब 160 किलोमीटर दूर धमतरी जिले में है ग्राम पंचायत सिहावा, जो कि महेंद्रगिरी पर्वत के नीचे और महानदी के तट पर बसा हुआ गांव है. सिहावा पहुंचते ही ऊंचे पहाड़ पर मंदिर और उस पर लहराते ध्वज को नीचे से ही देखा जा सकता है. इसी पहाड़ की चोटी पर है श्रृंगी ऋषि का आश्रम. इसे बोलचाल में श्रृंगी ऋषि पर्वत भी कहा जाता है. पहले ये वीरान हुआ करता था, लेकिन आज यहां मंदिर, मंडप, बिजली पानी सहित सभी चीजों का इंतजाम है. इसे लोगों के दान और पंचायत की मदद से किया गया है.माना जा रहा है कि 2017 में स्थानीय वेदाचार्यो औ्र पुजारियों ने श्रृंगी ऋषि का प्रतिष्ठापन किया था. आश्रम में कई प्राचीन खंडित प्रतिमाओ को भी सहेज कर रखा गया है. इनके बारे में कोई नहीं जानता कि ये क्या हैं, किस निर्माण का हिस्सा हैं, लेकिन इन्हें सुरक्षित रख लिया गया है. आश्रम में चट्टान के नीचे श्रृंगी ऋषि की तप करते हुए प्रतिमा है. श्रद्धालु यहां आते है पूजा करते है. इस आश्रम का प्रबंधन और रखरखाव गांव के ही पुजारी और स्थानीय वेदाचार्य करते है.आज सिहावा का श्रृंगी ऋषि पर्वत फिर से प्रासंगिक हो गया है. इसकी हर तरफ चर्चा हो रही है और लोग इसे देखने भी पहुंचने लगे है. दरअसल भगवान श्रीराम का श्रृंगी ऋषि से सीधा नाता था. रामचरित मानस के बाल कांड में बताया गया है कि जब राजा दशरथ को उत्तराधिकारी के रूप में पुत्र नहीं प्राप्त हो रहा था तब वो बड़े परेशान रहने लगे थे. तब महर्षि वशिष्ट ने उन्हें श्रृंगी ऋषि के शरण में जाने की सलाह दी थी. उस युग में कहा जाता था कि सिर्फ श्रृंगी ऋषि ने ही. अपनी तपस्या से पुत्रयेष्ठी मंत्र सिद्ध किया था. तो महर्षि वशिष्ट के कहे अनुसार राजा दशरथ सिहावा के महेंद्र गिरी पर्वत में आए और श्रृंगी ऋषि की शरण में जाकर उनसे पुत्रयेष्ठी यज्ञ करने की प्रार्थना की. कहा जाता है कि राजा दशरथ के साथ श्रृंगी ऋषि अयोध्या गए. वहां उन्होंने यज्ञ किया और उनसे प्राप्त खीर को राजा दशरथ की तीनों रानीयों को खिलाया. इसके बाद ही भगवान राम, भरत, लक्षमण और शत्रुघन का जन्म हुआ था.